निंदा, कमी और रिश्ते

 दोस्तों,, 

• निंदा के भागीदार हम सब हो सकते हैं, मगर निंदा करने वाले हम सब नहीं हो सकते !

जैसे आप में से कोई अपना घर छोड़कर बाहर पढ़ने निकला, और ये कदम आपके पड़ोसी या किसी रिश्तेदार को अच्छा नहीं लगा (क्योंकि उनके बच्चे बाहर पढ़ने नहीं जा पाए),
फिर वो अपने करीबी लोगों को आपकी तारीफ में कहते हैं, कि पढने वाले तो घर बैठकर भी पढ़ लेते हैं।
पढाई करने बाहर जाना' ये सब तो फालतू के चोचले हैं ।
निंदा में व्यक्ति की ईर्ष्या का स्वाद झलक जाता है, और सीधे शब्दों में कहूं तो किसी व्यक्ति पर तंज कसके बुराई करना ही निंदा है।

• कमी का सीधा मतलब है अल्पता, छांटना ।
कमी निकालना बिल्कुल गलत नहीं है, क्योंकि कमी निकालने से कमी सुधारने का मौका मिलता है ।  

मगर कमी और निंदा एक नहीं है, इसको एक समझकर कमी निकालने वालों को गलत ना समझे, इससे आप आपकी कमियों को दूर करने वाले' आपके मित्र या किसी साथी को खो सकते हैं।


"तुम्हारी खुशी में उनके चेहरे यूं ही नहीं खिलते,,
कमियां निकालकर बेहतर बनाने वाले दोस्त सबको नहीं मिलते"


  

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